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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
शुभ ध्यानों से शुभ फल मिलता अशुभ ध्यान फल अशुभ सदा । शुद्ध ध्यान से ही मिलता है शुद्ध ध्यान फल मोक्ष सदा ॥
ॐ
श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी विधान
मंगलाचरण
मंगलं सिद्ध परमेष्ठी मंगलं तीर्थंकरम् । मंगलं शुद्ध चैतन्यं आत्म धर्मोस्तु मंगलम् ॥ मंगलं ज्ञान भूषण कृत तत्त्व ज्ञान तरंगिणी मंगलं शुद्ध चिद्रूप शुद्धात्मा मंगलयम् ॥
चामर
वीतराग श्री जिनेन्द्र ज्ञान रूप मंगलम् । गणधरादि सर्व साधु ध्यान रूप मंगलम् ॥ आत्म धर्म विश्व धर्म सार्व धर्म मंगलम् वस्तु का स्वभाव ही अनाद्यनंत मंगलम् ॥ तत्त्वज्ञान श्रुत तरंगिणी सदैव मगलम् ज्ञान भूषण स्वरूप यह विधान मंगलम् ॥ पुष्पांजलि क्षिपामि पीठिका
दोहा
श्री ज्ञान भूषण सुमुनि आत्म ध्यान तल्लीन सप्तम षष्टम झूलते निज स्वभाव आधीन || गीतिका
ज्ञान भूषण मुनि रंचित है तत्त्वज्ञान तरंगिणी । 'तीन शत सत्तानवे श्लोक श्रुत अनुसारिणी ॥