________________
२२२ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी एकादशम अध्याय पूजन भाव अभाव रूप हूं मैं तो शुद्ध भाव का स्वामी हूं । पद अनर्घ्य का अधिपति हूं मैं तीन लोक में नामी हूं ||
पूजन क्रमांक १२ तत्त्वज्ञान तंरगिणी एकादशम अध्याय पूजन
स्थापना
गीतिका
तत्त्वज्ञान तरंगिणी एकादशम अध्याय सुन । शुद्ध निज चिद्रूप के ही गुण अनंतानंत गुन ॥ शुद्ध निज चिद्रूप में लवलीन विरले जीव हैं ।
आत्म गुण अनुरक्त प्राणी बहुत अल्प सदीव हैं | ॐ ह्रीं एकादशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं एकादशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थानं । ॐ ह्रीं एकादशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद विजया जनम दुख जरा दुख मरण दुख विनाशुं ।
यही भावना मेरे उर में जगी है || परम शान्त जल मैने पाया स्वभावी ।
तो परिणति विभावी स्वयं ही भगी है || मिला शुद्ध चिद्रूप का भव्य वैभव ।
___ तो फिर बोलो दुनिया में कैसे रहूँगा ||