________________
-
२०७ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान मैं सामान्य विशेष रूप से हूं चेतन पदार्थ शाश्वत । बाहयान्तर निग्रंथ दशा पा रहूं आत्मा में जाग्रत | शाश्वत दीप जलाऊं आज मोह विनाशुं हे जिनराज । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ करूं ज्ञान कैवल्य विकास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश ।
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
धर्म धूप ही ला अनमोल नाचूं आठों कर्म किलोल । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो | शुद्ध अबंध स्वरूप विकास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश ।
महा सुख हो देख नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि ।
सर्वोत्तम फल मोक्ष महान मैं भी पाऊ पद निर्वाण । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ पाऊं ध्रुव शिवपुर का वास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश |
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि ।
पद अनर्घ्य पाऊं अविलंब हरूं चार गतियों का दंभ । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ मुक्ति भवन में करूं निवास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश ।
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि. ।