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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी दशम अध्याय पूजन ज्ञानानंद लोक का अधिपति परमात्मा बन जाऊं में । भेदहीन अस्खलित शाश्वत सिद्ध स्वपद प्रगटाऊं मैं ||
छह द्रव्यों का ज्ञान करूं। निज स्वद्रव्य का भान करूं । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ भव आतप ज्वर करूं विनाश परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश।
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. ।
पंच अस्ति कायों को जान अस्ति काय निज लूं पहचान। परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ अक्षय पद में करूं निवास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश |
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।
अनुभव पुष्पों की हो वास हो निष्काम भावना पास । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो || कामबाण का करूं विनाश परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश ।
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. ।
निज नैवेद्य सहज सुख रूप क्षुधा रोग नाशू दुखरूप । परम सुख हो पूजे नाथ परम सुख हो ॥ करूं आत्मा में ही वास परम शुद्ध चिद्रूप प्रकाश ।
महा सुख हो देखे नाथ महा सुख हो ॥ ॐ ह्रीं दशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।