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१२९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान पुरुषार्थ सिद्ध करने को हो प्रभो आत्म अवलोकन । शिवपुर पर्यंत रहे प्रभु अंतर में निज का दर्शन । शीतल चंदन लाऊं देव भव आतप ज्वर हरूँ.स्वमेव । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो || एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण ।
. महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय || ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसातरताप विनाशनाय चंदनं नि. ।
उत्तम अक्षय लूं सुविचार अक्षय पद पाऊँ अविकार | परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो || एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण ।
महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि ।
भाव पुष्प की पाऊं गंध काम विनाशक स्वपद अबंध । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो || एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण ।
महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि ।
दिव्य सुचरु की ले सौगात क्षुधा रोग का करूं विघात । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो | एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण ।
महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय || ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. /