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१३० श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन धनोपार्जन करने का भाव न उर में जागे । भव राग धनोपार्जन का तत्क्षण ही स्वामी भागे ॥
ज्ञान दीप का ले आधार मोह तिमिर कर दूं सब क्षार । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो ||
एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण । महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥
ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
धूप दशांग धर्म की लाय आठों कर्म हरूं दुखदाय । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो ||
एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण । महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ||
ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
उत्तम फल लाऊँ अविकार महामोक्षफल हो साकार । परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो ॥
एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण । महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥
ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. ।
निज रस अर्घ्य बनाऊं नाथ पद अनर्घ्य का ही हो साथ। परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो ||
एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण । महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥
ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य प्राप्ताय फलं नि. ।