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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन रागादि भाव हिंसा है यह जिन वच कभी न माना । हरबार द्रव्य हिंसा को ही हिंसा मैंने माना ॥
पूजन क्रमांक ७
तत्त्वज्ञान तरंगिणी षष्टम अध्याय पूजन
स्थापना
गीतिका तत्त्व ज्ञान तरंगिणी अधिकार षष्टम है महान । चिद्रूप शुद्ध स्मरण से निर्मल बनो हो सावधान ॥ धर्म ध्यान महान हो उर में न कोई दंभ हो ।
शुक्ल ध्यान महान का भी फिर प्रभो आरंभ हो | ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद चौपई आँचली बद्ध निज निर्मल जल लाऊ नाथ जन्म मरण का तज दूँ साथ। परम गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो || एक शुद्ध चिद्रूप महान करूं आत्मा का कल्याण ।
महासुख होय पूजे नाथ परम सुख होय ॥ ॐ ह्रीं षष्टम अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि ।