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१२७ . श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान । उत्कृष्ट शान्त शुद्धात्म तत्त्व है जन्म मरण से सदा रहित। जीवत शक्ति से जीवित है गुण अनंत शक्तियों सहित ||
परम परिणामिकस्वभाव पति यह निःशल्य अरूपी है । निराकार है चित्स्वरूप है शाश्वत ब्रह्म स्वरूपी है || निऑयापार रूप ज्ञानमय निर्भय ममल स्वरूपी है । अशरीरी अक्षय अखंड है नित्यानंद अनूपी है ॥ विमलानंदी अजर अमर अविचल अविकल्प स्वरूपी है। सिद्ध स्वरूपी मोक्ष स्वरूपी केवल ज्ञान स्वरूपी है || ऐसा ही मेरा स्वरूप है शुद्ध बुद्ध है आनंद घन । नहीं पराश्रित भाव कहीं है सिद्ध स्वपद ही मेरा धन | यह दृढ़ निश्चय करूं आज मैं ध्याऊं अपना शुद्ध स्वरूप। भाव भासना ह्रदयंगम कर पाऊं ध्रुव चिन्मय चिद्रूप || चिदानंद चिच्चमत्कार चैतन्य चंद्र चंद्रिका प्रसिद्ध ।
सिद्ध लोक में ही मिलती है चेतन जब होता है सिद्ध ॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जयमाला पूर्णार्घ्य नि.।
आशीर्वाद परम शुद्ध चिद्रूप का चिन्तन महा विशाल । जो इसको उर धारते होते वही निहाल |
इत्याशीर्वाद :