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११४ तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचम अधिकार पूजन जो पंच महाव्रत में रत हैं वे हैं चारित्र मोह वाले । जो शुद्ध भाव में रत हैं वे चारित्रमोह द्रोह वाले ॥ चिद्रूप शुद्ध का वैभव मैंने न कभी पाया है ।
अतएव आत्मा मेरा चहुंगति में भटकाया है ॥१॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(२)
पूर्व मया कृतान्येव चिंतनान्यप्यनेकशः ।
न कदाचिन्महामोहात् शुद्धचिद्रूप चिन्तनम् ॥२॥ अर्थ- पहिले मैंने अनेक बार अनेक पदार्थो का मनन ध्यान किया है। परन्तु पुत्र स्त्री आदि के मोह से मूढ़ हो, शुद्धचिद्रूप का कभी आज तक चितवन न किया । २. ॐ ह्रीं महामोहरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।।
अमूढस्वरूपोऽहम् । पुत्रादिक में मोहित हो पर का ही ध्यान किया है । चिद्रूप शुद्ध का अब तक चिन्तवन कभी न किया है || चिद्रूप शुद्ध का वैभव मैंने न कभी पाया है ।
अतएव आत्मा मेरा चहुंगति में भटकाया है ॥२॥ ॐ ह्रीं पंचम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
(३) अनंतानि कृतान्येव मरणानि मयापि न ।
कुत्र चिन्मरणे शुद्धचिद्रूपोऽहमिति स्मृतम् ॥३॥ अर्थ- मैं अनंत बार अनंत भवों में मरा; परन्तु मुत्यु के समय मैं शुद्धचिद्रूप हूं ऐसा स्मरण कर कभी न मरा । ३. ॐ ह्रीं अनन्तमरणरहितामरचिद्रूपाय नमः ।
ज्ञानामरस्वरूपोऽहम् । मैं मरा अनंतों भव में बहुबार मृत्यु पायी है । केवल चिद्रूप शुद्ध है यह सुबुधि नहीं आयी है |