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तत्त्वज्ञान तरंगिनी चतुर्थ अध्याय पूजन यह ज्ञान सूर्य निज ज्ञाता है यह ज्ञान चंद्र ज्योतिर्मय ध्रुव । रागादि पुण्य पापों से तो यह भिन्न पूर्ण महिमामय शिव
अक्षयपद की प्राप्ति करूं मैं । पर विभाव हे नाथ हरूँ मैं | शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।
कामबाण की पीर मिटाऊँ । महाशील निज गुण प्रगटाऊँ ॥ शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥
ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. ।
क्षुधारोग की पीड़ा नाशूं । तृप्त स्वभाव महान विकासूँ || शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥
ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय
नैवेद्यं नि. ।
मिथ्याभ्रम तम दूर भगाऊँ । ज्ञान दीप उर मध्य जगाऊं ॥ शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥
ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
धूप दशांग धर्म की लाऊं। अष्टकर्म अरि पर जय पाऊं ॥ शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ || ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
महामोक्षफल हे प्रभु पाऊं। ज्ञाता दृष्टा भाव जगाऊं ॥ शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥
ॐ ह्रीं चतुर्थ अधिकार समन्वित श्री तत्त्व ज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. ।
पद अनर्घ्य की महिमा पाऊं। अर्घ्य अष्टगुण के ही लाऊं ॥ शुद्ध आत्मा के गुण गाऊँ । परम शुद्ध चिद्रूप रिझाऊँ ॥