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________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय (१०-११) विकल्पनय और अविकल्पनय विकल्पनयेन शिशुकुमाररस्थविरैकषुरुषवत् सविकल्पम् ॥१०॥ अविकल्पनयेनैकपुरुषमात्रवदविकल्पम् ॥११॥ यह धर्म यही बताता है कि 'है, पर अवक्तव्य है; अवक्तव्य है, पर है | अतः वचन से विराम लेकर इस भगवान आत्मा के अस्तित्व में समा जाना ही श्रेयस्कर है। ७८ नास्तित्व-अवक्तव्य धर्म आत्मा में पर की नास्ति एवं आत्मा की अनिर्वचनीयता को एक साथ बताता है। आत्मा में पर की नास्ति है - यह तो कहा, पर आत्मा इतना ही तो नहीं और भी अनन्तधर्मों की अस्ति आत्मा में है, अस्तित्वधर्म तो है ही, पर अभी अनन्तधर्मों का कहना संभव नहीं है - यह प्रकृति है नास्तित्व- अवक्तव्यधर्म की, जिसे नास्तित्व-अवक्तव्यनय विषय बनाता है। अस्तित्वनास्तित्व-अवक्तव्यनय यह बताता है कि अस्तित्व भी है, नास्तित्व भी है; पर एक साथ वे कहे नहीं जा सकते हैं। इसप्रकार भगवान आत्मा अस्तित्ववाला भी है, नास्तित्ववाला भी है और अवक्तव्य भी है - सब कुछ एकसाथ है । एक-एक नय से भगवान आत्मा के एक-एक धर्म को ही जाना जा सकता है; आत्मा के स्वरूप का गहराई से परिचय प्राप्त करने के लिए यह जरूरी भी है; पर अनन्तधर्मों के अधिष्ठाता भगवान आत्मा को जानने के लिए तो इन नयों से आत्मा को जानकर, इनसे विराम लेना होगा; अन्यथा विकल्पातीत, नयातीत नहीं हुआ जा सकेगा। इसप्रकार तीसरे से नौवें नय तक ये सप्तभंगी सम्बन्धी सात नय हैं। इन सप्तभंगी सम्बन्धी सात नयों को विशेष समझने के लिए जिनागम में प्रतिपादित 'सप्तभंगी' सिद्धांत को गहराई से समझना चाहिए ॥ ७-९ ॥ सप्तभंगी संबंधी नयों की चर्चा के उपरान्त अब विकल्पनय और अविकल्पनय की चर्चा करते हैं
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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