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________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय तत्त्वशक्ति और अतत्त्वशक्ति में यह बताया जा रहा है कि इस भगवान आत्मा में जो भी धर्म हैं; उन सभी के होनेरूप तत्त्वशक्ति है और उनसे भिन्न पदार्थों और उन पदार्थों के धर्मों रूप नहीं होने की शक्ति का नाम अतत्त्वशक्ति है। ये तत्त्व और अतत्त्व शक्तियाँ परस्पर विरुद्ध शक्तियाँ हैं। इसके भी आगे आनेवाली एकत्व-अनेकत्व और भाव-अभाव आदि शक्तियाँ भी परस्पर विरुद्ध शक्तियाँ हैं। इसप्रकार परस्पर विरुद्धधर्मत्वशक्ति के उपरान्त इन तत्त्व-अतत्त्व आदि परस्पर विरुद्ध शक्तियों का प्रतिपादन प्रसंगोचित ही है। इन परस्पर विरुद्ध शक्तियों के प्रतिपादन में एक क्रमिक विकास है। गहराई से देखने पर वह सहज ही ख्याल में आता है। इसप्रकार यह भगवान आत्मा तत्त्वशक्ति के कारण स्वद्रव्यक्षेत्र-काल-भावमय है और निरन्तर परिणमित भी होता है तथा अतत्त्वशक्ति के कारण न तो परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव रूप से है और न उनरूप, उनकी पर्यायोंरूप परिणमित ही होता है। ___ इसप्रकार स्वयं की अनंतशक्तियोंरूप होना तत्त्वशक्ति का कार्य है और पररूप नहीं होना अतत्त्वशक्ति का कार्य है। इसप्रकार तत्त्वशक्ति के कारण आत्मा ज्ञानादि गुणों रूप और उनके निर्मल परिणमन रूप है और अतत्त्वशक्ति के कारण रूपादि और रागादिरूप नहीं है। ___ तात्पर्य यह है कि स्वचतुष्टयरूप रहना और परचतुष्टयरूप नहीं होना इस आत्मा का सहज स्वभाव है और आत्मा के इस सहज स्वभाव का नाम ही तत्त्वशक्ति व अतत्त्वशक्ति है। स्व की अस्ति तत्त्वशक्ति का और पर की नास्ति अतत्त्वशक्ति का कार्य है। इन शक्तियों के ज्ञानश्रद्धान से स्वरूप में रहने की चिन्ता और पररूप न हो जाने का भय समाप्त हो जाता है। ध्यान रखने की विशेष बात यह है कि आरंभ में आनेवाली दृशि, ज्ञान, सुख, वीर्य आदि शक्तियाँ गुणरूप शक्तियाँ हैं और ये तत्त्वअतत्त्व, एक-अनेक आदि शक्तियाँ धर्मरूप शक्तियाँ हैं।।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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