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४७ शक्तियाँ और ४७ नय , २३. निष्क्रियत्वशक्ति सकलकर्मोपरमप्रवृत्तात्मप्रदेशनैष्पंधरूपा निष्क्रियत्वशक्तिः।
निष्क्रियत्वशक्ति समस्त कर्मों के उपरम (अभाव) से प्रवर्तित होने वाली आत्मप्रदेशों की निस्पन्दतास्वरूप है।
अकर्तृत्व और अभोक्तृत्व शक्तियों में मोहनीय कर्मोदयजन्य रागादि भावों के करने से उपरम (विराम-अभाव) और भोगने के उपरम (विरामअभाव) की बात कही थी तो अब यहाँ निष्क्रियत्वशक्ति में सम्पूर्ण कर्मों के उपरम (विराम-अभाव) से होनेवाली आत्मप्रदेशों की अकंपदशा की बात कर रहे हैं। तात्पर्य यह है कि भगवान आत्मा कर्मोदयजन्य आत्मप्रदेशों के कंपनरूपयोगों से भी रहित है, अकंपस्वभावी है, निष्क्रिय है।
यहाँ क्रिया शब्द का अर्थ न तो क्षेत्र से क्षेत्रान्तररूप गति से है और न काल से कालान्तररूप परिणमन से ही है; यहाँ तो आत्मा के प्रदेशों में होनेवाले कंपन का नाम ही क्रिया है। भगवान आत्मा ऐसी क्रिया से रहित है; अतः निष्क्रिय है, निष्क्रियत्वशक्ति से सम्पन्न है।
अकर्तृत्व और अभोक्तृत्व शक्ति में आत्मा को रागादिविभाव के अभावस्वरूप अमल बताया था और निष्क्रियत्वशक्ति में आत्मप्रदेशों की चंचलता के अभावरूप अचल बताया जा रहा है।
यह भगवान आत्मा अमल भी है और अचल भी है। पर्याय में घातिकर्मों के अभाव से पूर्ण अमलता प्रगट होती है और अघाति-कर्मों के अभाव से अचलता प्रगट होती है। अरहंत भगवान पूर्णतः अमल हैं, पर अचल नहीं; किन्तु सिद्ध भगवान अमल भी हैं और अचल भी। __यह तो पर्याय में प्रगट अमलता और अचलता की बात है; किन्तु यहाँ तो यह कहा जा रहा है कि भगवान आत्मा का स्वभाव त्रिकाल अमल और अचल है। जिसप्रकार की अकंपदशा सिद्ध भगवान में प्रगट हुई है; उसीप्रकार