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________________ अकर्तृत्वशक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति २१-२२. अकर्तृत्वशक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामकरणोपरमात्मिका सकलकर्मकृतज्ञातृत्वमात्रातिरिक्तपरिणामानुभवो अकर्तृत्वशक्तिः। परमात्मिका अभोक्तृत्वशक्तिः । इसप्रकार अमूर्तत्वशक्ति का स्वरूप समझने के उपरान्त अब अकर्तृत्व शक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति का स्वरूप समझते हैं - इस इक्कीसवीं अकर्तृत्वशक्ति और बाईसवीं अभोक्तृत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - ज्ञानभाव से भिन्न कर्मोदय से होनेवाले रागादि विकारी भावों के कर्तृत्व से रहित होनेरूप अकर्तृत्वशक्ति है । इसीप्रकार ज्ञानभाव से भिन्न कर्मोदय से होनेवाले रागादि विकारी परिणामों के अनुभव से, भोक्तृत्व से रहित होनेरूप अभोक्तृत्वशक्ति है। दोनों शक्तियों के उक्त स्वरूप पर दृष्टिपात करने से एक बात तो यह स्पष्ट होती है कि दोनों के स्वरूप में करणोपरम और अनुभवोपरम के अलावा कोई अन्तर नहीं है। अभोक्तृत्वशक्ति की परिभाषा में अकर्तृत्वशक्ति की परिभाषा से करणोपरम पद को निकाल कर उसके स्थान पर अनुभवोपरम पद रख दिया गया है। तात्पर्य यह है कि ज्ञानभाव से भिन्न कर्मोदय से होनेवाले रागादि विकारी भावों के कर्तृत्व से रहित अकर्तृत्वशक्ति है और उन्हीं के भोक्तृत्व से रहित अभोक्तृत्वशक्ति है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि अकर्तृत्वशक्ति के कारण आत्मा रागादि का अकर्ता है और अभोक्तृत्वशक्ति के कारण रागादि का अभोक्ता है ॥२१-२२ ॥ इसप्रकार अकर्तृत्वशक्ति और अभोक्तृत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब निष्क्रियत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - इस तेईसवीं निष्क्रियत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार दिया गया है - 4
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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