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अकार्यकारणत्वशक्ति
१४. अकार्यकारणत्वशक्ति अन्याक्रियमाणान्याकारकैकद्रव्यात्मिका अकार्यकारणत्वशक्तिः।
अपने स्वभाव और सीमा में परिपूर्ण विकसित होने के लिए तुझे पर के सहयोग की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं है; क्योंकि तुझमें एक असंकुचितविकासत्व नाम की शक्ति है; जिसके कारण तू स्वयं में परिपूर्ण विकास कर सकता है। __ इसप्रकार हम देखते हैं कि अपने स्वभाव की सीमा में असीमित विकास होना, असंकुचितविकास होना ही असंकुचितविकासत्वशक्ति का कार्य है। इस शक्ति का रूप सभी शक्तियों में होने से सभी शक्तियों का अपने-अपने स्वभावानुसार अपनी-अपनी सीमा में असीमित विकास हो सकता है और यह विकास अनंत शक्तियों के संग्रहालय भगवान आत्मा के आश्रय से होता है, त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा के ज्ञान, श्रद्धान और ध्यान से होता है।।१३।।
इसप्रकार असंकुचितविकासत्वशक्ति की चर्चा करने के उपरान्त अब अकार्यकारणत्वशक्ति की चर्चा करते हैं। ..
इस चौदहवीं अकार्यकारणत्वशक्ति की परिभाषा आत्मख्याति में इसप्रकार दी गई है -
इस भगवान आत्मा में एक शक्ति ऐसी भी है कि जिसके कारण यह आत्मा न तो अन्य से किया जाता है और न अन्य को करता ही है।
एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है, कारण नहीं है, कार्य नहीं है - यह सभी द्रव्यों के संदर्भ में जैनदर्शन का सामान्य कथन है। इसी सिद्धान्त को आधार बनाकर यहाँ अपने आत्मा पर घटित किया जा रहा है।
अनंत शक्तियों के संग्रहालय इस भगवान आत्मा में एक शक्ति ऐसी भी है कि जिसके कारण यह भगवान आत्मा न तो किसी का कार्य है और न किसी का कारण है।