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________________ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय ११. स्वच्छत्वशक्ति नीरूपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकालोकाकारमेचकोपयोगलक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः। ध्यान रहे, भगवान आत्मा में ये सभी शक्तियों वस्तुरूप से हैं; काल्पनिक नहीं। अत: यह कथन निश्चयनय का है, व्यवहारनय का नहीं। तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा में स्वपर को देखनेजानने की शक्ति है-यह बात परमसत्य है।।९-१०॥ सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब स्वच्छत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - इस ग्यारहवीं स्वच्छत्वशक्ति का स्पष्टीकरण आत्मख्याति में इसप्रकार किया गया है - ___ अमूर्तिक प्रदेशों में प्रकाशमान लोकालोक के आकारों से मेचक अर्थात् अनेकाकार उपयोग है लक्षण जिसका, वह स्वच्छत्वशक्ति है। जिसप्रकार पौद्गलिक अचेतन दर्पण स्वभावतः ही स्वच्छ होता है, उसके सामने जो भी पौद्गलिक (मूर्तिक) पदार्थ आते हैं; वे सभी पदार्थ बिना किसी भेदभाव के एकसाथ उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं, झलक जाते हैं। उसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी स्वभाव से अत्यन्त स्वच्छ है, निर्मल है और इसमें भी सभी पदार्थ एकसाथ प्रतिबिम्बित हो जाते हैं, झलक जाते हैं, देख लिये जाते हैं, जान लिये जाते हैं। ध्यान रहे, पौद्गलिक दर्पण में तो मात्र मूर्तिक पुद्गल ही झलकते हैं; किन्तु इस भगवान आत्मा में मूर्तिक पदार्थों के साथ-साथ अमूर्तिक जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये सभी पदार्थ, इनके गुण तथा उनकी समस्त भूत, भावी और वर्तमान पर्यायें भी प्रतिबिम्बित हो जाती हैं। एक बात और भी है कि दर्पण में तो वही मूर्तिक पदार्थ झलकते हैं, जो उसके सामने आते हैं; परन्तु भगवान आत्मा के स्वच्छ स्वभाव
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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