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४७ शक्तियाँ और ४७ नय ९-१०. सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति । विश्वविश्वसामान्यभावपरिणतात्मदर्शनमयीसर्वदर्शित्वशक्तिः, विश्वविश्वविशेषभावपरिणतात्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्तिः।
जीवत्व, चिति, दृशि और ज्ञान आदि सभी भावों अर्थात् शक्तियों में व्याप्त एकभावरूप शक्ति का नाम विभुत्वशक्ति है। ___ तात्पर्य यह है कि इस भगवान आत्मा में एक ऐसी शक्ति भी विद्यमान है कि जो स्वयं तो सभी भावों (शक्तियों) में व्याप्त है ही, साथ में इसका रूप सभी शक्तियों में होने से सभी शक्तियाँ भी एक-दूसरे में व्याप्त हैं।
शक्तियों के परस्पर भिन्न होने पर भी इस शक्ति के कारण वे शक्तियाँ परस्पर एक-दूसरे में व्याप्त हैं; इसीकारण यह भगवान आत्मा अखण्ड है, अविभक्त है, एक है।।७-८||
इसप्रकार प्रभुत्वशक्ति और विभुत्वशक्ति के विवेचन के उपरान्त अब सर्वदर्शित्व और सर्वज्ञत्वशक्ति के स्वरूप पर विचार करते हैं।
इन शक्तियों का स्वरूप आत्मख्याति में जिसप्रकार स्पष्ट किया गया है, उसका हिन्दी अनुवाद इसप्रकार है - __ सर्वदर्शित्वशक्ति समस्त विश्व के सामान्य भाव को देखनेरूप से परिणत आत्मदर्शनमयी है और सर्वज्ञत्वशक्ति समस्त विश्व के विशेष भावों को जाननेरूप से परिणत आत्मज्ञानमयी है।
दोनों शक्तियों का स्वरूप थोड़े-बहुत अन्तर के साथ लगभग एक जैसा ही है। यद्यपि दोनों शक्तियाँ मूलत: आत्ममयी हैं; तथापि दोनों में अन्तर है कि सर्वदर्शित्वशक्ति आत्मदर्शनमयी होते हुए भी समस्त विश्व के सामान्यभाव (सत्सामान्य) को देखनेरूप है और सर्वज्ञत्वशक्ति आत्मज्ञानमयी होते हुए भी समस्त विश्व के विशेषभावों को जाननेरूप है। सर्वदर्शित्वशक्ति देखनेरूप है और सर्वज्ञत्वशक्ति जाननेरूप है तथा सर्वदर्शित्वशक्ति सामान्य भावको विषय बनाती है और सर्वज्ञत्वशक्ति विशेष भावों को विषय बनाती है।