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________________ वीर्यशक्ति १३ ६. वीर्यशक्ति स्वरूपनिर्वर्तनसामर्थ्यरूपा वीर्यशक्तिः। रहा है; परपदार्थों में ही सुख की खोज करता रहा है; तथापि आजतक उसे रंचमात्र भी सुख की प्राप्ति नहीं हुई है; इसीकारण आकुल-व्याकुल हो रहा है। इस सुखशक्ति के स्वरूप को समझने से इसे यह पता चलेगा कि यह भगवान आत्मा तो स्वयं सुख का पिण्ड है, आनन्द का कंद है; सुख प्राप्ति के लिए इसे पर की ओर देखने कीरंचमात्र भी आवश्यकता नहीं है। दूसरे, यह आत्मा जिन शुभभावों और पुण्यकर्म को सुख का कारण जानकर आज तक अपनाता रहा है; वे सुख के कारण नहीं हैं, सुख का कारण तो स्वयं अपना आत्मा है - यह जानकर अपने उपयोग को वहाँ से हटाकर अपने आत्मा के सम्मुख करेगा।।५।। इसप्रकार इस सुखशक्ति को समझने के उपरान्त अब वीर्यशक्ति की चर्चा करते हैं - वीर्यशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार समझाया गया हैस्वरूप की रचना की सामर्थ्यरूप वीर्यशक्ति है। जंब यह भगवान आत्मा अरहंत-सिद्धदशा को प्राप्त हो जाता है; तब उसके अनंतदर्शन, अनंतज्ञान, अनंतसुख और अनंतवीर्य प्रगट हो जाते है। इन्हे अनंतचतुष्टय कहते है। __ उक्त अनंतचतुष्टय दृशिशक्ति, ज्ञानशक्ति, सुखशक्ति और वीर्यशक्ति का ही परिपूर्ण प्रस्फुटन है। वैसे तो अरहंत-सिद्ध अवस्था में सभी शक्तियाँ पूर्णतः प्रस्फुटित हो जाती हैं, पूर्ण निर्मलदशा को प्राप्त हो जाती हैं; तथापि प्रमुखरूप से अनंतचतुष्टय के रूप में उल्लेख उक्त शक्तियों के निर्मल परिणमन का ही होता रहा है।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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