________________ शून्यनय असर्वगतनय सर्वगतनय अशून्यनय ज्ञानज्ञेय अद्वैतनय ज्ञानज्ञेय द्वैतनय अनित्यनय नियतिनय अनियतिनय स्वभावनय अस्वभावनय कालनय विशेषनय नित्यनय अकालनय सामान्यनय भावनय द्रव्यनय पुरुषकारनय दैवनय इश्वरनय स्थापनानय नामनय अनीश्वरनय गुणीनय अविकल्पनय अगुणीनय विकल्पनय कर्तृनय अस्तित्व नास्तित्व अवक्तव्यनय अकर्तृनय नास्तित्व अवक्तव्यनय भोक्तृनय अस्तित्व अवक्तव्यनय अभोक्तृनय क्रियानय अवक्तव्यनय ज्ञाननय अस्तित्व नास्तित्वनय व्यवहारनय नास्तित्वनय निश्चयनय अस्तित्वनय अशुद्धनय पर्यायनय दव्यनय शुद्धनय __डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का नाम आज जैन समाज के उच्च कोटि के विद्वानों में अग्रणीय है। ____ ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी वि.स. 1992 तदनुसार शनिवार, दिनांक 25 मई 1935 को ललितपुर (उ.प्र.) जिले के बरौदास्वामी ग्राम के एक धार्मिक जैन परिवार में जन्मे डॉ. भारिल्ल; शास्त्री, न्यायतीर्थ साहित्यरत्न तथा एम.ए., पी-एच.डी. हैं। समाज द्वारा विद्यावारिधि, महामहोपाध्याय, विद्यावाचस्पति, परमागमविशारद, तत्ववेत्ता, अध्यात्मशिरोमणि, वाणीविभूषण, जैनरत्न, आदि अनेक उपाधियों से समय-समय पर आपको विभूषित किया गया है। सरल, सुबोध, तर्कसंगत एवं आकर्षक शैली के प्रवचनकार डॉ. भारिल्ल आज सर्वाधिक लोकप्रिय आध्यात्मिक प्रवक्ता हैं। उन्हें सुनने देश-विदेश में हजारों श्रोता निरन्तर उत्सुक रहते हैं। आध्यात्मिक जगत में ऐसा कोई घर न होगा, जहाँ प्रतिदिन आपके प्रवचनों के कैसेट न सुने जाते हों तथा आपका साहित्य उपलब्ध न हो। धर्म प्रचारार्थ आप पच्चीस बार विदेश यात्रायें भी कर चुके हैं। - जैनजगत में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले डॉ. भारिल्ल ने अब तक छोटी-बड़ी 70 पुस्तकें लिखी हैं और अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है, जिनकी सूची अन्दर प्रकाशित की गई। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अब तक आठ भाषाओं में प्रकाशित आपकी कृतियाँ 42 लाख से भी अधिक की संख्या में जन-जन तक पहुंच चुकी हैं। सर्वाधिक बिक्री वाले जैन आध्यात्मिक मासिक 'वीतराग-विज्ञान' हिन्दी तथा मराठी के आप सम्पादक हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन की छत के नीचे चलने वाली विभिन्न संस्थाओं की समस्त गतिविधियों के संचालन में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। ___ वर्तमान में आप श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद के अध्यक्ष तथा पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर के महामंत्री हैं।