________________
११८
४७ शक्तियाँ और ४७ नय उदाहरण देकर ज्ञाननय का स्वरूप समझाते हैं - एक लकड़हारे को जंगल में पड़ा हुआ एक चिन्तामणि रत्न प्राप्त हो गया। लकड़हारा उसकी कीमत तो जानता नहीं था, उसकी दृष्टि में तो वह एक चमकीला पत्थर मात्र था। उस चिन्तामणि रत्न को लेकर वह लकड़हारा अपने घर के कोने में बैठे एक व्यापारी के घर पहुंचा और उस व्यापारी से बोला
“सेठजी ! यह चमकीला पत्थर खरीदोगे ?"
रत्नों के पारखी सेठजी चिन्तामणि को देखकर मंत्रमुग्ध हो गये; वे उसे एकटक देखते ही रहे कुछ भी न बोल सके।
सेठजी के मौन से व्याकुल लकड़हारा बोला - "क्यों क्या बात है ? खरीदना नहीं है क्या ?" जागृत हो सेठजी कहने लगे - "खरीदना क्यों नहीं है? खरीदेंगे, अवश्य खरीदेंगे। बोलो, क्या लोगे?" "दो मुट्ठी चने से कम में तो किसी हालत में नहीं दूंगा" -
- अकड़ता हुआ लकड़हारा बोला तो अचंभित होते हुए सेठजी के मुँह से निकला - "बस, दो मुट्ठी चने !"
"हाँ, दो मुट्ठी चने।" सेठजी ने अपने को सँभाला और कहने लगे :
"दो मुट्ठी चने तो बहुत होते हैं; एक मुट्ठी चने में नहीं दोगे?" . यद्यपि सेठजी दो मुट्ठी चने तो क्या, दो लाख स्वर्णमुद्राएँ भी दे सकते थे; तथापि उन्हें भय था कि एकदम 'हाँ' कर देने से काम बिगड़ सकता है; अत: उन्होंने एक मुट्ठी चने की बात सोच-समझकर हिलानेडुलाने के लिए ही कही थी; पर लकड़हारा बोला -
"अच्छा लाओ, एक मुट्ठी चने ही सही इस मुफ्त के पत्थर के।" इसप्रकार वह अमूल्य चिन्तामणि रत्न उन सेठजी को अपने घर के