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________________ ११४ ४७ शक्तियाँ और ४७ नय प्रश्न - पहले अगुणीनय से भी भगवान आत्मा को साक्षी बताया गया था और अब यहाँ अकर्तृनय में भी साक्षी बताया जा रहा है। इन दोनों साक्षीभावों में क्या अन्तर है ? ___ उत्तर - सम्पूर्ण जगत को साक्षीभाव से देखने-जानने के स्वभाववाला होने से भगवान आत्मा तो सम्पूर्ण जगत का ही साक्षी है; अतः यहाँ प्रकरणानुसार भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से भिन्न-भिन्न वस्तुओं का साक्षीपन बताया गया है। अगुणीनय में, प्राप्त होनेवाले उपदेश का साक्षीभाव बताया गया है और यहाँ अकर्तृनय में, अपने में उत्पन्न होनेवाले रागादिभावों का साक्षीभाव बताया जा रहा है और आगे चलकर अभोक्तृनय में, अपने में उत्पन्न होनेवाले सुख-दुःख का साक्षीभाव बताया जायगा। ___ तात्पर्य यह है कि अगुणीनय में गुणीनय के विपक्षरूप साक्षीभाव लिया गया है, अकर्तृनय में कर्तृनय के विपक्षरूप साक्षीभाव लिया गया है और अभोक्तृनय में भोक्तृनय के विपक्षरूप साक्षीभाव लिया गया है। इसे और अधिक स्पष्ट करें तो इसप्रकार कह सकते हैं कि यह भगवान आत्मा गुणीनय से गुणग्राही है अर्थात् उपदेश को ग्रहण करनेवाला है और अगुणीनय से गुणग्राही नहीं है, मात्र साक्षीभाव से देखने-जाननेवाला है; कर्तृनय से अपने आत्मा में उत्पन्न होनेवाले रागादि भावों का कर्ता है और अकर्तृनय से उनका कर्ता नहीं है, मात्र साक्षीभाव से देखने-जानने वाला है। इसीप्रकार भोक्तृनय से अपने में उत्पन्न सुख-दुःख का भोक्ता है और अभोक्तृनय से अपने में उत्पन्न सुख-दुःख का भी भोक्ता नहीं है, मात्र साक्षीभाव से जानने-देखने वाला है। इसप्रकार अगुणीनय के साक्षीभाव में गुणग्राहित्व का निषेध है,
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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