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________________ स्वभावनय और अस्वभावनय (२४-२९) स्वभावनय और अस्वभावनय स्वभावनयेनानिशिततीक्ष्णकण्टकवत्संस्कारानर्थक्यकारि॥२८॥ अस्वभावनयेनायस्कारनिशिततीक्ष्णविशिखवत्संस्कारसार्थक्यकारि॥२९॥ और अनियति नामक धर्म के कारण जड़रूप नहीं होकर भी चिद्विवों में निरन्तर बदलता रहता है। भगवान आत्मा के इन नियतिधर्म और अनियतिधर्मों को विषय बनानेवाले नय ही क्रमशः नियतिनय और अनियतिनय हैं। ध्यान रहे कि इन नियतिनय और अनियति नयों का पर्यायों की क्रमबद्धता और अक्रमबद्धता से कोई सम्बन्ध नहीं है ।।२६-२७|| नियतिनय और अनियतिनय की चर्चा के उपरान्त अब स्वभावनय और अस्वभावनय की चर्चा करते हैं - “आत्मद्रव्य स्वभावनय से, जिसकी किसी के द्वारा नोक नहीं निकाली जाती, ऐसे पैने काँटे की भाँति संस्कारों को निरर्थक करनेवाला है और अस्वभावनय से, जिसकी नोक लुहार के द्वारा संस्कार करके निकाली गई है, ऐसे पैने बाण की भाँति, संस्कार को सार्थक करनेवाला है॥२८-२९॥" नियतिनय और अनियतिनय के माध्यम से आत्मा के त्रिकाल एकरूप रहनेवाले नियतस्वभाव एवं नित्य परिवर्तनशील अनियतस्वभाव का दिग्दर्शन करने के उपरान्त अब स्वभावनय और अस्वभावनय के माध्यम से यह बताया जा रहा है कि आत्मा के नियतस्वभाव को संस्कारों द्वारा बदलना संभव नहीं है, पर अनियतस्वभाव को संस्कारित किया जा सकता है। जिसप्रकार भगवान आत्मा का स्वभाव अग्नि की उष्णता के समान नियत भी है और पानी की उष्णता के समान अनियत भी है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा स्वभावनय से स्वाभाविक नोकवाले काँटे के समान संस्कारों को निरर्थक करनेवाला भी है और अस्वभावनय से बनाई गई बाण की नोक की भाँति संस्कारों को सार्थक करनेवाला भी है।
SR No.007195
Book Title47 Shaktiya Aur 47 Nay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2008
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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