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________________ नयों के मूल भेद घटित होते हैं तथा इसीप्रकार पर्यायार्थिकनय की विषय-वस्तु में भी निश्चय-व्यवहार, दोनों नय घटित होते हैं; अतः निश्चय-व्यवहार दोनों नयों का हेतु द्रव्यार्थिकनय भी है और पर्यायार्थिकनय भी है। निश्चय का हेतु मात्र द्रव्यार्थिकनय और व्यवहारनय का हेतु मात्र पर्यायार्थिकनय हो - ऐसा सर्वथा नहीं है। यथार्थ निरूपण को निश्चय और उपचरित निरूपण को व्यवहार कहा गया है। यहाँ भी द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयों के विषय का निरूपण, यथार्थ और उपचरित दोनों रूपों में होता है अर्थात् द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय - इन दोनों पर निश्चय और व्यवहारनयों का प्रयोग किया जाता है, अतः द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक, दोनों नयों को निश्चय-व्यवहार दोनों नयों का हेतु अथवा आधार कहा गया है। द्रव्यार्थिकनय के विषय में निश्चयनय के प्रयोग - - 1. परमभावग्राही शुद्ध द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत अखण्ड निर्विकल्प आत्मस्वभाव को ही परमशुद्धनिश्चयनय का विषय कहा गया है। 2. शुद्धद्रव्यार्थिकनय के तीनों भेदों का विषय भी परमशुद्धनिश्चयनय का विषय है। ____ 3. कर्मोपाधिसापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय की विषयभूत जीव की विकारी पर्यायें, अशुद्धनिश्चयनय का विषय हैं। द्रव्यार्थिकनय के विषय में व्यवहारनय के प्रयोग - - 1. द्रव्यार्थिकनय के विषयभूत द्रव्य में द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा सामान्य, अभेद, नित्य और एक - ऐसे विशेषणों से भेद करना, अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय का विषय है। - 2. अखण्ड द्रव्य में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य/द्रव्य-पर्याय का भेद करना, पर्यायार्थिक तथा अनुपचरित-सद्भूतव्यवहारनय का विषय है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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