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नय-रहस्य 3. निश्चय को भूतार्थ और व्यवहार 3. दोनों को ही भेद अपेक्षा भूतार्थ __ को अभूतार्थ कहा गया है। | और अभेद अनुभूति की अपेक्षा ।
अभूतार्थ कहा गया है। 4. निश्चय को उपादेय और व्यवहार 4. दोनों नयों की विषय-वस्तु को को हेय कहा गया है। .. मुख्यतया ज्ञेय कहा गया है,
क्योंकि आगम शैली में मुख्यतया ज्ञेयतत्त्व का प्रतिपादन किया
जाता है। 5. इनके भेद-प्रभेद, शुद्ध-अशुद्ध 5. द्रव्यार्थिक नय के दश और .
या सद्भूत-असद्भूत तथा पर्यायार्थिक नय के छह भेद उपचरित-अनुपचरित के रूप में अलग प्रकार से किये गये हैं। किये गये हैं। 6. निश्चय-व्यवहारनय मुख्यतः 6. द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय छहों
आत्मा पर लागू होते. हैं। । द्रव्यों पर लागू होते हैं। 7. इनका प्रयोग मुख्यतया अध्यात्म 7. इनका प्रयोग मुख्यतया आगम
शैली में किया जाता है। | शैली में किया जाता है। 8. निश्चय-व्यवहार का मुख्यतः 8. द्रव्यार्थिक - पर्यायार्थिक का
सम्बन्ध वस्तु के अंशों/धर्मों से सम्बन्ध वस्तु के दो मूल अंश न होकर उसकी निरूपण-पद्धति द्रव्य-पर्याय से है।
से है।
9. निश्चय-व्यवहार शैली में संयोग 9. द्रव्यार्थिक - पर्यायार्थिक में सम्बन्धों की चर्चा भी होती है। मुख्यतया एक ही वस्तु की चर्चा
| होती है। 3. द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय निश्चय-व्यवहारनयों के हेतु किसप्रकार हैं?
द्रव्यार्थिकनय की विषय-वस्तु में निश्चय और व्यवहार, दोनों नय