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________________ नयों के मूल भेद .. 31.. करने की प्रेरणा देते हुए व्यवहार को मात्र जाना हुआ प्रयोजनवान कहा गया है, जबकि समयसार की ही 13वीं गाथा की टीका में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक - इन दोनों नयों को भेद की अपेक्षा भूतार्थ और अभेद निर्विकल्प अनुभूति की अपेक्षा अभूतार्थ कहा गया है। यह तथ्य भी विशेष ध्यान देने योग्य है कि समयसार में द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकनयों की चर्चा बहुत कम आई है; जबकि निश्चय-व्यवहार की चर्चा मूल ग्रन्थ में, टीका में तथा भावार्थ में बहुत की गई है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ये दोनों जोड़े जिनागम की दो प्रकार की कथन शैलियों के भेद हैं। अध्यात्म-पद्धति में मुख्यतः निश्चय-व्यवहार की शैली का और आगम-पद्धति में मुख्यतः द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक की शैली का प्रयोग देखा जाता है; अतः इन दोनों शैलियों को एक-दूसरे में मिलाकर देखने के बदले इन्हें पृथक्-पृथक् सन्दर्भ में देखना चाहिए। 2. निश्चय-व्यवहारनय और द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय में क्या अन्तर है? उक्त दोनों शैलियों में समानता होने पर भी जिनागम में उपलब्ध इनके प्रयोगों के आधार पर निम्नलिखित अन्तर दृष्टिगोचर होते हैं - निश्चय-व्यवहारनय | द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिकनय 1. निश्चय-व्यवहार प्रयोजन-परक 1. द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक वस्तुनय हैं। परक नय हैं। 2. निश्यय-व्यवहार में प्रतिपाद्य- 2. इनमें इसप्रकार का कोई सम्बन्ध प्रतिपादक तथा व्यवहार-निश्चय नहीं कहा गया है। में निषेध्य-निषेधक सम्बन्ध कहा गया है।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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