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________________ 27 नयों की प्रमाण से भिन्नता और अभिन्नता अस्तित्वादि जितने भी वस्तु के निजस्वभाव हैं, उन सबको अथवा विरोधी धर्मों को युगपत् ग्रहण करनेवाला प्रमाण है और उन्हें गौणमुख्यभाव से ग्रहण करनेवाला नय है। वस्तु के अवक्तव्यपने और वक्तव्यपने को नय-प्रमाण की भाषा में प्रस्तुत करते हुए पंचाध्यायी, पूर्वार्द्ध, गाथा 747-748 में लिखा है - तत्त्व, अनिर्वचनीय है - यह शुद्ध द्रव्यार्थिव य का पक्ष है। द्रव्य, गुण-पर्यायवान है - यह पर्यायार्थिकनय का पक्ष है और जो यह अनिर्वचनीय है, वही गुण-पर्यायवान है, कोई अन्य नहीं और जो यह गुण-पर्यायवान है, वही तत्त्व है - ऐसा प्रमाण का पक्ष है। ऐसे ही प्रयोग शुद्ध-अशुद्ध, एक-अनेक, नित्य-अनित्य आदि धर्म-युगलों पर भी किये जाने चाहिए। जैसे, जीव सिद्ध समान शुद्धस्वभावी है - यह द्रव्यार्थिकनय का पक्ष है। जीव संसारी है - यह पर्यायार्थिकनय का पक्ष है। जो यह संसारी जीव है, वही सिद्ध समान शुद्धस्वभाववाला है और जो यह सिद्ध समान शुद्धस्वभाववाला जीव है, वह संसारी है - ऐसा प्रमाण का पक्ष है। __ इसप्रकार दोनों धर्मों को जानकर ही वर्तमान पर्याय से दृष्टि हटाकर शुद्धस्वभाव का अवलम्बन किया जा सकता है; अतः आत्महित के लिए नयों को अप्रामाणिक न मानकर प्रमाण का अंश स्वीकार करते हुए जिनागम के अभ्यास द्वारा प्रमाण और नय से वस्तु-स्वरूप का यथार्थ निर्णय करना ही श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न 1. नय, प्रमाण से भिन्न हैं या अभिन्न? दोनों अपेक्षाएँ स्पष्ट कीजिए। 2. अभेद वस्तु अथवा धर्मी प्रमाण का विषय है या नय का ? स्पष्ट कीजिए।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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