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________________ नयों के मूल भेद नयों की उपयोगिता, स्वरूप और प्रामाणिकता पर विचार करने के बाद यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि नय कितने प्रकार के हैं अर्थात् उसके कितने भेद हैं? जिनागम में नयों के भेदों की चर्चा भिन्न-भिन्न प्रकार से की गई है। मुख्यतया-नयों के भेद निम्नानुसार उपलब्ध होते हैं - (अ) निश्चयनय-व्यवहारनय (ब) द्रव्यार्थिकनय-पर्यायार्थिकनय (स) नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढ़नय और एवंभूतनय (द) शब्दनय, अर्थनय और ज्ञाननय (क) द्रव्यनय और भावनय (ख) प्रवचनसार में वर्णित सैंतालीस नय इनके अलावा श्लोकवार्तिक के नय-विवरण में श्लोक 17 से 19 तक आचार्य विद्यानन्दिजी लिखते हैं कि नय, सामान्य से एक, विशेष में - संक्षेप से दो, विस्तार से सात और अति विस्तार से संख्यात भेदवाले हैं। इसीप्रकार धवला में असंख्यात भेद और सर्वार्थसिद्धि एवं प्रवचनसार में नयों के अनन्त भेद भी कहे गये हैं। प्रत्येक वस्तु में अनन्त शक्तियाँ होती हैं; अतः प्रत्येक शक्ति को जाननेवाले ज्ञान की
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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