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________________ 25 नयों की प्रमाण से भिन्नता और अभिन्नता विषय है, प्रमाण का नहीं। भेद और अभेद को एकसाथ जाननेवाला ज्ञान प्रमाण है। अभेद और भेद को पृथक्-पृथक् जानना नय है। वस्तुतः एक अखण्ड द्रव्य, व्यापक होने से वह अपने अनन्त गुण, धर्म, स्वभाव तथा त्रिकालवर्ती पर्यायों में व्याप्त होकर रहता है। गुण, धर्म आदि द्रव्य के अंश तो हैं; परन्तु एक गुण, धर्म आदि ही सम्पूर्ण द्रव्य नहीं हो सकते। . काश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक अखण्ड राष्ट्र है। एकएक इंच भूमि में भारत व्याप्त है; परन्तु एक नगर ही भारत नहीं कहा जा सकता। यदि एक नगर को भारत माना जाए तो शेष सभी नगर, भारत से भिन्न होने से परदेश हो जाएँगे अथवा प्रत्येक नगर भारत कहलाएगा और एक अखण्ड भारत खण्ड-खण्डरूप हो जाएगा, लेकिन यदि एक नगर को भारत का अंश भी स्वीकार न किया जाए तो दूसरे नगर भी भारत नहीं कहे जा सकेंगे, अतः ऐसे भारत के सर्वथा लोप होने का प्रसंग आएगा। ___इसप्रकार भारत देश के एक नगर की भाँति, नय और प्रमाण की विषयभूत वस्तु भी परस्पर कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न समझनी चाहिए अर्थात् वस्तु के गुण-पर्यायरूप अंशों को अखंण्ड वस्तु से कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न समझना चाहिए। प्रश्न - अखण्ड द्रव्य को उसके गुण-पर्यायों से कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न मानने से क्या लाभ है? उत्तर - अनेकान्त भी सम्यक् एकान्त - ऐसे निजपद की प्राप्ति के अलावा अन्य किसीप्रकार से कार्यकारी नहीं है। अखण्ड वस्तु को उसके गुण-पर्यायों से कथंचित् अभिन्न स्वीकार करने से शुद्धनय के विषयभूत अभेद द्रव्य की सिद्धि होती है तथा कथंचित् भिन्न मानने से 1. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, नय-विवरण, श्लोक 4 से 9
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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