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________________ जब से परमभावप्रकाशक नयचक्र का पठन-पाठन आरम्भ हआ; तब से समाज में जो जागृति हई, उसमें पण्डित अभयकुमारजी शास्त्री का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। मैं उनके उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता हूँ। अभी वर्तमान में श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय में परमभावप्रकाशक नयचक्र श्री संजीवकुमार जैन गोधा पढ़ाते हैं। वे भी इस विषय में परिपक्व हो गये हैं; उन्होंने भी इस विषय को आत्मसात् कर लिया है। मेरी भावना है कि ऐसे अनेक विद्वान तैयार हों और वे अपनी वाणी से, लेखनी से इस विषय को जन-जन तक पहुँचाने में अपना जीवन समर्पित करें, महत्त्वपूर्ण योगदान दें। जिनागम अगाध है, उसमें प्रवेश आसान नहीं है। उसमें प्रवेश करने वाले आत्मार्थी जन भटकें नहीं, अपितु उसका सही मर्म समझें, तभी उनका एवं समाज का कल्याण सम्भव है। जिनागम में प्रवेश का महान कार्य नयों के प्रयोग से सम्भव है; अतः नयों के विशेषज्ञों की गहन उपयोगिता है, अत्यन्त आवश्यकता है; क्योंकि जिनागम और जैनदर्शन की सच्ची समझ नयों के सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक् प्रयोग पर निर्भर है। - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर नय-रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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