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मंगल आशीर्वाद
चिरंजीव अभयकुमार न केवल मेरे प्रिय छात्र रहे हैं; अपितु 'वे मेरे सहयोगी भी रहे हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन में सत्रह वर्ष तक मेरे साथ कार्यरत रहे । जब मैं परमभावप्रकाशक नयचक्र लिख रहा था, तब वे स्मारक में ही थे। मैं जितना प्रतिदिन लिखता, वे उसे उसी दिन पढ़ लिया करते थे ।
जब यह परमभावप्रकाशक नयचक्र वीतराग - विज्ञान विद्यापीठ के पाठ्यक्रम में लगा; तब से वे श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त महाविद्यालय के छात्रों को यह नयचक्र पढ़ाने लगे । समाज में जहाँ जाते, लगभग इसी पर कक्षायें लेने लगे, प्रवचन करने लगे । इसप्रकार वे परमभावप्रकाशक नयचक्र के विशेषज्ञ विद्वान के रूप में विश्रुत हो गये ।
नयचक्र का अध्ययन-अध्यापन करते समय वे आवश्यक नोट्स तैयार करते गये ।
प्रस्तुत नय-रहस्य उन्हीं नोट्स का परिमार्जित सुसम्पादित रूप है।
जो पाठक बन्धु उक्त दोनों कृतियों को एक साथ रखकर अध्ययन करेंगे तो उन्हें सहज ही सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा ।
नयों के सम्बन्ध में न केवल आत्मार्थी समाज में, अपितु सम्पूर्ण जैन व जैनेतर जगत में इतना गहन और व्यापक अज्ञान है कि उसे मिटाने के लिए जितने अधिक से अधिक इसप्रकार के प्रयास किये जायें, उतने ही कम पड़ेंगे।
नय - रहस्य
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