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नयों का सामान्य स्वरूप मिथ्यानय होंगे।
आचार्य समन्तभद्र आप्तमीमांसा, कारिका 108 में कहते हैं - निरपेक्षा नया मिथ्या, सापेक्षा वस्तुतेऽर्थकृत्।
अर्थात् निरपेक्षनय मिथ्या होते हैं और सापेक्ष नय सम्यक् व सार्थक होते हैं। इसीप्रकार सापेक्षनय को सुनय और निरपेक्षनय को दुर्नय कहा गया है।
प्रश्न - वस्तुस्वभाव तो निरपेक्ष है, फिर उसे जाननेवाले नय सापेक्ष कैसे होंगे? ___उत्तर - स्वभाव निरपेक्ष है - इसका अर्थ यह है कि वस्तु की सत्ता, स्वतन्त्रता और प्रभुता पर-पदार्थों के आधीन नहीं है। वस्तु अपने स्वरूप से ही सत् है - यही उसकी निरपेक्षता है; परन्तु उसमें विद्यमान अनन्त धर्मों को मुख्य-गौण करके ही जाना और कहा जा सकता है। किसी एक धर्म को मुख्य करना ही सापेक्षता है। . ___'अपेक्षा' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। जहाँ वस्तु को पर और पर्यायों से निरपेक्ष कहा जाता है, वहाँ पराधीनता के अर्थ में अपेक्षा शब्द का प्रयोग करके वस्तु के स्वभाव को निरपेक्ष अर्थात् स्वाधीन कहा जाता है।
‘अपेक्षा' शब्द का लौकिक अर्थ किसी से कुछ चाहना अर्थात् आशा करना है। प्रायः यह कहा जाता है कि हमें तो उनसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी या ऐसी अपेक्षा थी। नयों की सापेक्षता के प्रसंग में यह अर्थ भी अभीष्ट नहीं है।
न्यायशास्त्र में 'अपेक्षा' शब्द का प्रयोग ‘अविनाभावित्व' के अर्थ में भी किया जाता है। जैसे, द्रव्य और पर्याय परस्पर सापेक्ष हैं अर्थात् दोनों एक-दूसरे के बिना नहीं होते, पर्यायरहित द्रव्य नहीं होता 1. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 266