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________________ 16 नय-रहस्य अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाण-नय-साधनः। अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽर्पितानयात्।। प्रमाण और नय हैं साधन जिसके - ऐसा अनेकान्त भी अनेकान्तस्वरूप है; क्योंकि सर्वांशग्राही प्रमाण की अपेक्षा वस्तु अनेकान्तस्वरूप एवं अंशग्राही नय की अपेक्षा वस्तु एकान्तस्वरूप है। उक्त कथन से स्पष्ट है कि अनेकान्तवादी जैनदर्शन में अनेकान्त में भी अनेकान्त स्वीकार किया गया है। सर्वथा अनेकान्त मानना भी एकान्त है, जिसके नाश के लिए नय योजना करनी चाहिए अर्थात् कथंचित् अनेकान्त और कथंचित् एकान्त स्वीकार करने पर ही सम्यक्-' अनेकान्त होता है। अनेकान्त में भी अनेकान्त का स्पष्टीकरण - जिसप्रकार वस्तु कथंचित् भेदरूप और कथंचित् अभेदरूप है, सर्वथा भेदरूप या सर्वथा अभेदरूप नहीं है; अतः उसे सर्वथा अभेदरूप या भेदरूप मानना मिथ्या-एकान्त है। उसीप्रकार वस्तु को सर्वथा अनेकान्तरूप मानना भी मिथ्या-एकान्त है। वस्तु में विद्यमान परस्पर विरोधी धर्म प्रमाण द्वारा जाने जाते हैं, अतः प्रमाण की अपेक्षा वस्तु अनेकान्तरूप है। यदि उसे सर्वथा अनेकान्तरूप माना जाए तो नयों के विषयभूत एक-एक धर्म का सर्वथा लोप होने का प्रसंग आएगा और . जब एक धर्म ही नहीं रहेगा तो परस्पर विरोधी धर्म भी कैसे रहेंगे? इसप्रकार सम्यक्-एकान्तरूप नयों का निषेध करने से अनेकान्तरूप वस्तु का भी लोप हो जाएगा; अतः वस्तु को सर्वथा अनेकान्तरूप न मानकर-कथंचित् (प्रमाण की अपेक्षा) अनेकान्तरूप और कथंचित् (नय की अपेक्षा) एकान्तरूप माना गया है। इसप्रकार कथंचित् अनेकान्त + कथंचित् एकान्त = अनेकान्त समझना चाहिए। यदि अनेकान्त में से
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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