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________________ नयों का सामान्य स्वरूप होने पर गौणता और मुख्यता का अभिप्राय नहीं बनता । ' प्रमाण द्वारा पदार्थ के परस्पर विरुद्ध धर्म एक साथ जाने जाते हैं; अतः उसमें किसी धर्म का गहन परिचय प्राप्त करने का अवकाश नहीं है, जिससे हेय - उपादेय का निर्णय नहीं हो सकता। किसी एक धर्म को मुख्य करके जानने से ही उस धर्मरूप वस्तु का प्रगाढ़ परिचय हो सकेगा। प्रश्न केवलज्ञान के बिना हम सम्पूर्ण वस्तु को कैसे जान सकेंगे? और सम्पूर्ण वस्तु को जाने बिना मुख्य - गौण करना कैसे सम्भव होगा ? te उत्तर - यहाँ केवलज्ञान के द्वारा प्रत्येक धर्म को प्रत्यक्ष जानना विवक्षित नहीं है, अपितु वस्तु अनन्तधर्मात्मक है - ऐसा श्रुतज्ञान प्रमाण से जानना तथा उसके सामान्य- विशेष आदि धर्म - युगलों को एक साथ जानना - यही सम्पूर्ण वस्तु को जानना है। इसलिए श्रुतज्ञानप्रमाण द्वारा वस्तु का निर्णय करने के बाद नयों द्वारा वस्तु को जानना आवश्यक है। 15 4. एकान्तवाद का नाश करने हेतु नयों की प्रवृत्ति होती है - नयचक्रकार माइल्लधवल लिखते हैं अनेक स्वभावों से परिपूर्ण वस्तु को प्रमाण द्वारा ग्रहण करने के पश्चात् एकान्तवाद का नाश करने के लिए नयों की योजना करनी चाहिए । ' - 1. परमभावप्रकाशक नयचक्र, पृष्ठ 25 2. द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र, गाथा 172 यहाँ यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि नय, स्वयं सम्यक्एकान्त स्वरूप हैं तो नय-प्रयोग से एकान्त का नाश कैसे होगा ? उक्त प्रश्न के समाधान हेतु आचार्य समन्तभद्र रचित स्वयंभू स्तोत्र का श्लोक 103 दृष्टव्य है
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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