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________________ 14 नय-रहस्य. अंश में होती है, तो क्या पदार्थों को पहले प्रमाण द्वारा जानें, फिर नयों का प्रयोग करें? यदि हाँ, तो प्रमाण द्वारा सम्पूर्ण पदार्थ का ज्ञान कर लेने के बाद नयों द्वारा जानने की आवश्यकता क्या है? उत्तर - यद्यपि सम्यग्दर्शन-ज्ञान होने पर ही यथार्थ (निर्विकल्प) नयरूप एवं प्रमाणरूप परिणमन एक साथ प्रारम्भ हो जाता है, तथापि वस्तु-स्वरूप का निर्णय करने के लिए मिथ्यात्व की मन्दता में आत्मार्थी जीव, जिनागम के आधार से प्रमाण और नयों का स्वरूप जानकर, वस्तु-स्वरूप का निर्णय करते हैं। प्रमाण द्वारा वस्तु के सामान्य-विशेष, द्रव्य-पर्याय, नित्यअनित्य आदि अनेक धर्म-युगलों को जाने बिना किसी एक धर्म को मुख्य और अब शेष धर्म को गौण कैसे किया जा सकता है ? ' अर्थात् परस्पर विरुद्ध धर्म-युगलों में से किसी एक धर्म को मुख्य और शेष धर्मों को गौण करने के लिए वस्तु के दोनों धर्मों को जानना आवश्यक है। __ यदि दोनों धर्मों को जाने बिना किसी एक नय के विषय को जानेंगे तो उसे ही सर्वथा मान लिया जाएगा, जिसमें नयाभास या मिथ्या-एकान्त हो जाएगा। - यदि सोने की अंगूठी, ज्ञान का विषय नहीं बनेगी तो मात्र स्वर्ण या अंगूठी को मुख्य कैसे किया जाएगा? और स्वर्ण को मुख्य किये बिना उसे दृष्टि का विषय बनाने का निर्णय कैसे किया जा सकता है? इसीलिए यह कहा गया है कि प्रमाण द्वारा जाने गए पदार्थ के किसी एक अंश में नयों की प्रवृत्ति होती है। धवलाकार के निम्न कथन से भी यही आशय पुष्ट होता है - प्रमाण से नयों की उत्पत्ति होती है। क्योंकि वस्तु के अज्ञात
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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