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________________ 13 नयों का सामान्य स्वरूप अनादिकाल से सुनी है, उसका परिचय और अनुभव भी किया है; परन्तु अपने एकत्व-विभक्तस्वरूप की बात कभी (रुचिपूर्वक) सुनी ही नहीं, उसका परिचय और अनुभव तो कहाँ से करता? अतः लौकिक बातों में चतुर होते हुए भी हमें प्रयोजनभूत तत्त्वों का यथार्थ निर्णय आज तक नहीं हुआ, अन्यथा संसार में क्यों भटकते? यहाँ प्रयोजनभूत तत्त्वों का निर्णय करने के उद्देश्य से ही प्रमाण और नयों का स्वरूप जानने की बात है। तत्त्वार्थसूत्र में जीवादि तत्त्वों को जानने के उपाय के रूप में ही प्रमाण-नयों की चर्चा की गई है। प्रश्न - यहाँ तो लौकिक जीवन में सभी जीवों को नय-प्रयोग करनेवाला बताया गया है; जबकि पहले यह कहा गया है कि नय, ज्ञानी को ही होते हैं, अज्ञानी को नहीं? उत्तर - नय, सम्यक् श्रुतज्ञान में होते हैं, अतः ज्ञानी को ही होते हैं। वास्तव में नय-प्रमाण में प्रयोजनभूत जीवादि तत्त्वों को यथार्थ श्रद्धानपूर्वक जानने या न जानने से ही उनमें सम्यक् या मिथ्या का भेद पड़ता है। इसीलिए नय, ज्ञानी को ही होते हैं; क्योंकि वे ही प्रयोजनभूत तत्त्वों को यथार्थ जानते हैं। ज्ञानीजन भी लौकिक जीवन में जो नयप्रयोग करते हैं, वे लौकिक दृष्टि से सम्यक् या मिथ्या कहे जा सकते हैं, मोक्षमार्ग की अपेक्षा तो वे मिथ्या ही हैं। उन्हें लौकिक नय अवश्य कह सकते हैं। किसी व्यक्ति को ज्ञानी या अज्ञानी भी प्रयोजनभूत तत्त्वों के जानने या न जानने की अपेक्षा से कहा जाता है। लौकिक ज्ञान यथार्थ होने पर भी वह मोक्षमार्ग का साधक नहीं है; अपितु मिथ्यात्व और कषाय का पोषक होने से मिथ्याज्ञान ही है।। ___ 3. नयों की प्रवृत्ति प्रमाण द्वारा जाने गए पदार्थ के एक अंश में होती है - प्रश्न - नयों की प्रवृत्ति, प्रमाण द्वारा जाने गए पदार्थों के एक
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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