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नयों का सामान्य स्वरूप जिनागम का मर्म समझ कर, आत्मानुभूति प्रगट करने के लिए नयज्ञान की उपयोगिता स्थापित हो जाने के बाद यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि नय क्या हैं? अर्थात् वे कोई द्रव्य हैं, गुण हैं अथवा पर्याय हैं? अतः यहाँ पर नयों की कुछ विशेषताओं के माध्यम से नयों का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
1. नय सम्यक् श्रुतज्ञान के अंश हैं -
नयों के बारे में सर्वप्रथम जानने योग्य तथ्य यह है कि वे जीव के ज्ञानगुण की श्रुतज्ञानरूप पर्यायें हैं। तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्ज्ञान के पाँच भेदों का वर्णन करते हुए मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् - सूत्र कहा गया है। इनमें पाँचों ज्ञानों को प्रमाणरूप कहा है; परन्तु नय, श्रुतज्ञान में ही होते हैं; अतः नय श्रुतज्ञानरूप सम्यग्ज्ञान के भेद हैं अर्थात् ज्ञान का प्रमाण-नयरूप परिणमन श्रुतज्ञान में गर्भित होता है। शेष चार ज्ञानों में संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रहित होने से प्रामाणिकता होने पर भी उनमें नयरूप परिणमन नहीं होता है।
प्रश्न - नय श्रुतज्ञान में ही क्यों होते हैं, अन्य ज्ञानों में क्यों नहीं?
उत्तर - अनन्तधर्मात्मक वस्तु में से किसी एक धर्म को मुख्य करके जानने की प्रक्रिया श्रुतज्ञान में ही होती है। अथवा जो ज्ञान वस्तु