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________________ नय-रहस्य प्रश्न - क्या पक्षातिक्रान्त दशा सदा बनी रहती है? उत्तर - निचली भूमिका में उपयोग में निर्विकल्प दशा तो बहुत अल्पकाल तक रहती है। उसके बाद पुनः शुभाशुभ विकल्प होने लगते हैं, परन्तु अभिप्राय अर्थात् प्रतीति में शुद्धात्मतत्त्व में अहं की धारा निरन्तर चलती रहती है। यह धारा भी प्रमाण-नय के विकल्पों से रहित होने से पक्षातिक्रान्त ही कहलाती है। इस पक्षातिक्रान्त दशा का विस्तृत विवेचन इसी पुस्तक के अध्याय 7 में किंचित् विस्तार के साथ किया गया है। इसप्रकार पक्षातिक्रान्त दशा अर्थात् आत्मानुभूति पूर्वक सम्यग्दर्शन प्रगट करने के लिए नयों के द्वारा वस्तुस्वरूप का निर्णय करके सर्वप्रथम असत्कल्पनाओं का अभाव करना आवश्यक है, जो नयज्ञान के द्वारा ही सम्भव है। षट्खण्डागम की धवला टीका' में तो 'नयवाद में निपुण मुनियों को ही सिद्धान्त के सच्चे ज्ञाता' कहते हुए लिखा है कि 'जिनेन्द्र भगवान के मत में नयवाद के बिना सूत्र और अर्थ कुछ भी नहीं है।' अतः वस्तु-स्वरूप का यथार्थ निर्णय करने के लिए नयों का स्वरूप समझना, प्रत्येक आत्मार्थी के लिए श्रेयस्कर है। . अभ्यास-प्रश्न 1. सम्यक् श्रुत भी मिथ्या कैसे हो जाता है? 2. 'नयज्ञान की आवश्यकता' - इस विषय को आगम-प्रमाणों से स्पष्ट कीजिए। 3. ‘आत्मानुभूति' के लिए नयज्ञान की आवश्यकता क्यों है? सिद्ध कीजिए। 4. असत्कल्पना और सत्कल्पना के अन्तर को चार्ट के माध्यम से स्पष्ट कीजिए। 1. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 2, पृष्ठ 513
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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