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________________ नयज्ञान की आवश्यकता - नयों के स्वरूप एवं भेद-प्रभेद की विस्तृत चर्चा करने से पहले नयों को जानने की आवश्यकता के बारे में विचार करना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र की गाथा 181 अत्यन्त प्रेरणादायक है - .. जे णयदिट्ठिविहीणा ताण ण वत्थूसहावउवलद्धि। वत्थुसहावविहूणा सम्मादिट्ठी कहं हुंति।। जो नय-दृष्टि (नय-ज्ञान) से रहित हैं, उन्हें वस्तु-स्वभाव की उपलब्धि नहीं हो सकती और जो वस्तु-स्वभाव से रहित हैं, वे सम्यग्दृष्टि कैसे हो सकते हैं? .. यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए नय-ज्ञान को अनिवार्य बताया जा रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि प्रमाण-नय तो पण्डिताई करने के लिए हैं, पण्डितों के लिए हैं; हमें तो आत्मा का अनुभव करना है; अतः हम इनमें क्यों उलझें; क्योंकि अनुभव में तो नय-विकल्प होते नहीं? ऐसा कहने वाले लोगों से मेरा यही अनुरोध है कि वे इस प्रकरण की गम्भीरता को समझें। ___अनुभव में नय-विकल्प नहीं हैं; परन्तु शुद्धनय का विषय तो है
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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