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विषय-प्रवेश था और अब माँ को छोड़कर सात समुन्दर पार जाने के लिए भी तैयार है।
यह तो रही लोक की बात; यहाँ तो आत्म-कल्याण में रुचिवन्त जीवों को स्व-पर, आत्मा-परमात्मा, सात तत्त्व आदि प्रयोजनभूत बातों का यथार्थ निर्णय हो सके - इस प्रयोजन से नयों का विशुद्ध अनुशीलन करने का प्रयास किया जा रहा है, क्योंकि सम्पूर्ण जिनागम में प्रमाण और नय से ही वस्तु-स्वरूप का निरूपण किया गया है। महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र में तो सात तत्त्वों को जानने का उपाय प्रमाण-नयों को बताते हुए प्रमाणनयैरधिगमः1 - इस सूत्र की रचना की गई है। .. - वास्तव में प्रमाण और नय उस तराजू के समान हैं, जिन पर अनेक वस्तुओं को तोला जाता है। वजन तोलनेवाला व्यक्ति तराजू का प्रयोग करना तो जानता ही है; अन्यथा वह पदार्थों का सही वजन कैसे जान सकेगा? अतः यदि हम प्रयोजनभूत सात तत्त्वों का सही स्वरूप जानना चाहते हैं तो हमें प्रमाण-नय की तराजू का प्रयोग करना सीखना ही होगा, अन्यथा तत्त्वों के बारे में विपरीत श्रद्धान बना ही रहेगा, जिससे संसार-भ्रमण का अन्त कभी नहीं आ सकेगा। ...
अभ्यास-प्रश्न 1. भाषा और परिभाषा जाने बिना लौकिक जगत में भी नयों का प्रयोग
किसप्रकार होता है? . 2. इस पुस्तक को लिखने का प्रयोजन क्या है?
1. तत्त्वार्थसूत्र, प्रथम अध्याय, सूत्र 6