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________________ नय-रहस्य चायवाले को 'ए चाय'! या टैक्सीवाले को 'ए टैक्सी'! कहकर नहीं बुलाते? किसी अपेक्षा के बिना यह व्यवहार कैसे सम्भव है? इसप्रकार लोक में भी वस्तु का कथन, अपेक्षा से करने की पद्धति देखी जाती है। अब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि दुनिया में जैनियों के अतिरिक्त (अलावा) 'नय' शब्द का प्रयोग तो कोई नहीं करता और जैनियों में भी मात्र कुछ विद्वानों को छोड़कर कोई भी ‘नय' शब्द का प्रयोग करता नहीं देखा जाता। क्या कोई बालक अपनी माँ से यह कहता है कि 'तू इस नय से मेरी माँ है?' यदि नहीं तो फिर आप यह कैसे कह सकते हैं कि नयों के बिना दुनिया का काम भी नहीं चलता? भाई! नयों की महत्ता बताने के लिए ही पूज्य माइल्ल धवल, आचार्य देवसेन, जिनेन्द्र वर्णी, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल आदि गहन चिन्तकों द्वारा नय सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं और उनके विशेष स्पष्टीकरण के लिए यह पुस्तक लिखी जा रही है। ताकि हम नयों का स्वरूप, उनकी उपयोगिता तथा भेद-प्रभेद आदि के बारे में आवश्यक विस्तार और गहराई से जान सकें। रही बात जन-साधारण द्वारा 'नय' शब्द का प्रयोग न करने की तो मात्र शब्द-प्रयोग में ही नय नहीं होता, नय तो भाव अर्थात् ज्ञान में होता है। एक बालक 'माँ' की परिभाषा नहीं जानता; परन्तु माँ के वात्सल्य का अनुभव अवश्य करता है। इसीप्रकार वह भूख-प्यास, क्रोध-प्रेम आदि शब्दों को नहीं जानता; परन्तु इन भावों का वेदन तो करता ही है। ___ इससे यह स्पष्ट होता है कि भावानुभूति भाषा के आधीन नहीं होती। कैसी विडम्बना है कि भाषा-ज्ञान से रहित शिशु, माँ के वात्सल्य का जितना गहन अनुभव करता है, भाषा-ज्ञान से समृद्ध युवा होने के बाद उसकी अनभूति में माँ के प्रति उतनी आसक्ति नहीं रह पाती, जितनी बचपन में थी। पहले वह एक पल भी माँ को देखे बिना नहीं रह सकता
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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