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नय-रहस्य
विषय-प्रवेश
(दोहा) श्री जिनवर की वन्दना, करूँ सहज निष्काम। पक्षातिक्रान्त परमात्मा, पाऊँ मंगलधाम।। नय-प्रमाण से जानकर, सप्त तत्त्व का मर्म।
रत्नत्रयनिधि प्राप्तकर, कटें त्रिविध दुष्कर्म।। इस विश्व को जगत्, लोक, दुनिया आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। किसी बुद्धिमान् व्यक्ति ने ही कभी इसे दुनिया (दो 'नय' वाली) कहना प्रारम्भ किया होगा; क्योंकि इस जगत् की गाड़ी मुख्यतः दो नयों की पटरी पर ही चलती है। सम्पूर्ण जिनागम तो दो नयों की शैली में वस्तु-स्वरूप का एवं मोक्षमार्ग का निरूपण करता ही है, जन-सामान्य भी लौकिक प्रसंगों में भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं का प्रयोग किये बिना नहीं रहता।
क्या एक बालक अपनी माता में विद्यमान मातृधर्म को मुख्य किये बिना उसे माँ कह सकता है? नहीं। क्या हम और आप किसी