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________________ 40 मंगलाचरण (दोहा) मंगलमय जिनराज को, वन्दूँ बारम्बार । जिनवाणी - गुरु को नमूँ, नय-रहस्य दातार ।। धन्य-धन्य जिनदेव का, स्याद्वाद नयचक्र । जिसे साधने से मिटे, भविजन का भवचक्र ।। (वीरछन्द) जिनवर का नयचक्र अहो ! यह मोह तिमिर का करे विनाश । भेदज्ञान की दिव्य-ज्योति में, शुद्धातम का करे प्रकाश ।। एक अखण्ड अभेद त्रिकाली, ज्ञायक ध्रुव चैतन्य स्वभावपरम शुद्धनय करे प्रकाशित, परम पारणामिक निजभाव || उभय नयाश्रित शिवपुर पथ पर, सम्यग्ज्ञान सुरथ चालकहैं प्रवीण नयचक्र चलाने में गुरु शरणागत पालक । । प्रतिपादक परमार्थ तत्त्व का, अतः कहें सम्यक् व्यवहार । किन्तु निषिद्ध सुनिश्चय से है, भेदज्ञान का यही प्रकार ।। द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिकनय, कहें यथार्थ पदार्थ स्वभाव । नित्यानित्य अभेद-भेदमय, एकानेक चिदानन्द भाव ।। स्याद्वादमय जिनवाणी से, नय - विरोध का करें शमन । जो अनादि अक्षुण्ण चिदातम, लखें, मोह का करें वमन ।। नयपक्षों से मुक्त हुए जो, निज स्वरूप में गुप्त रहें। निर्विकल्प हो शान्तचित्त, वे ही अमृत साक्षात् पियें ।। जिनप्रवचन का मर्म अहो ! यह, जानो नय - रहस्य का सार । अन्तर्मुख परिणति में बहती, चिदानन्द रस अमृत धार || - नय- रहस्य
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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