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अनेकान्त-स्याद्वाद धर्म का कथन करना। जैसे, वस्तु सर्वथा नित्य ही है। ____3. सम्यक् अनेकान्त - सम्यक् एकान्तों का समूह सम्यक् अनेकान्त है। जैसे, वस्तु नित्यानित्य है।
4. मिथ्या अनेकान्त - मिथ्या एकान्तों का समूह मिथ्या अनेकान्त है। जैसे, वस्तु सर्वथा नित्य भी है और सर्वथा अनित्य भी है।
आचार्य समन्तभद्र मिथ्या अनेकान्त को उभयैकान्त भी कहते हैं।
इसप्रकार जैनदर्शन वस्तु को अनेकान्तरूप तो कहता ही है, एकान्तरूप भी कहता है। वह प्रमाण को अनेकान्तरूप और नय को एकान्तरूप कहता है।
प्रश्न 11 - क्या प्रत्येक वाक्य में 'स्यात्' पद लगाना अनिवार्य है?
उत्तर - यदि वक्ता के अभिप्राय में स्यात् पद की विवक्षा हो तो हर वाक्य में ‘स्यात्' पद का प्रयोग अनिवार्य नहीं है। वाणी में बारबार ‘स्यात्' पद लगाना भाषा के प्रवाह की दृष्टि से भी उचित नहीं माना गया है। एक बालक अपनी माँ को बार-बार 'मेरी माँ..., मेरी माँ न कहकर मात्र 'माँ' कहता है और सभी लोग समझ जाते हैं कि यह अपनी ओर से ही उसकी माँ को माँ कह रहा है, अन्य को भी नहीं और अन्य की अपेक्षा भी नहीं। इसीप्रकार ‘स्यात्' पद न कहा जाने पर भी कहा गया समझ लेना चाहिए।
प्रश्न 12 – क्या आत्मा में सभी धर्म एक साथ रहते हैं?
उत्तर - अनेकान्त की परिभाषा में आचार्य अमृतचन्द्र ने “एक वस्तु में वस्तुत्व को निपजानेवाली" - इस पद का प्रयोग किया है अर्थात् सत्-असत्, एक-अनेक, नित्य-अनित्य आदि परस्पर विरोधी