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________________ 362 नय-रहस्य अनेकान्तवादी हैं या सर्वथा अनेकान्तवादी? वह इसके उत्तर में कहे कि हम तो सर्वथा अनेकान्तवादी हैं तो यह भी एकान्त हो जाएगा, क्योंकि इसमें अनेकान्त के दूसरे पक्ष एकान्त का सर्वथा निषेध हो रहा है। यदि वह कहे कि हम कथंचित् अनेकान्तवादी हैं तो इससे यह स्वतःसिद्ध हो गया कि वह कथंचित् एकान्तवादी भी है। इसमें कोई दोष भी नहीं है, क्योंकि जैनमत को सर्वथा एकान्त अस्वीकृत है, कथंचित् एकान्त नहीं। वस्तुतः जैनदर्शन न तो सर्वथा एकान्तवादी है और न सर्वथा अनेकान्तवादी। वह कथंचित् एकान्तवादी है और कथंचित् अनेकान्तवादी, क्योंकि उसमें प्रमाण और नय द्वारा वस्तु का निर्णय किया जाता है। इस प्रकरण की चर्चा अध्याय दो में विस्तार से की गई है, अतः पाठकों से अनुरोध है कि उसे एक बार अवश्य पढ़ लें। इस सम्बन्ध में कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 261 में कहा गया है - जं वत्थु अणेयंतं, एयंतं तं पि होदि सविपेक्खं। सुयणाणेण णएहिं य, णिरवेक्खं दीसदे णेव।। अर्थात् जो वस्तु अनेकान्तरूप है, वही सापेक्ष दृष्टि से एकान्तरूप है। श्रुतज्ञान (प्रमाण) की अपेक्षा अनेकान्तरूप है और नयों की अपेक्षा सम्यक् एकान्तरूप है। बिना अपेक्षा (निरपेक्ष) के वस्तु का स्वरूप नहीं देखा जा सकता। ___ वस्तुतः अनेकान्त और एकान्त, सम्यक् और मिथ्या के भेद से दो-दो प्रकार के हैं। इनका स्वरूप इस प्रकार है - 1. सम्यक् एकान्त - अन्य धर्मों को गौण करके एक धर्म की मुख्यता से कथन करना। जैसे, वस्तु कथंचित् नित्य है। 2. मिथ्या एकान्त - अन्य धर्मों का सर्वथा निषेध करके एक
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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