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________________ अनेकान्त-स्याद्वाद 361 प्रमाणवाक्य में मात्र ‘स्यात्' पद का प्रयोग होता है, किन्तु नयवाक्य में 'स्यात्' पद के साथ-साथ ‘एव' (ही) का प्रयोग भी आवश्यक है। 'ही' - यह शब्द सम्यक् एकान्त का सूचक है और 'भी' सम्यक् अनेकान्त का सूचक है।" प्रश्न 9 - ‘स्यात्' पद का प्रयोग क्या सूचित करता है? उत्तर - ‘स्यात्' पद के प्रयोग से यह स्पष्ट हो जाता है कि जो कथन किया जा रहा है, वह अंश के सम्बन्ध में है, पूर्ण वस्तु के सम्बन्ध में नहीं। इस सन्दर्भ में पुरुषार्थसिद्धयुपाय, गाथा 2 में जन्मान्ध व्यक्तियों द्वारा हाथी के बारे में विवाद करने का उल्लेख किया है, जो इसप्रकार है - "जैसे, एक हाथी को अनेक जन्मान्ध व्यक्ति छूकर जानने का यत्न करें और जिसके हाथ में हाथी का पैर आ जाए, वह हाथी को खम्भे के समान, पेट पर हाथ फेरनेवाला दीवार के समान, कान पकड़नेवाला सूप के समान और सूंड पकड़नेवाला केले के स्तम्भ के समान कहे तो वे सम्पूर्ण कथन हाथी के बारे में सही नहीं होंगे, क्योंकि देखा है अंश को और कहा गया सर्वांश को। ___यदि अंश देखकर अंश का ही कथन करें तो गलत नहीं होगा। जैसे, यदि यह कहा जाए कि हाथी का पैर खम्भे के समान है, कान सूप के समान है, पेट दीवार के समान है तो कोई असत्य नहीं; क्योंकि ये कथन सापेक्ष हैं और सापेक्ष नय सत्य होते हैं; अकेला पैर हाथी नहीं है, लेकिन पेट भी हाथी नहीं है, इसीप्रकार कोई भी अकेला अंग, अंगी को पूर्णतः व्यक्त नहीं कर सकता है।" प्रश्न 10 - अनेकान्त में भी अनेकान्त किस प्रकार घटित होता है? उत्तर - यदि कोई अन्यमती, जैनमती से पूछे कि आप कथंचित्
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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