SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सैंतालीस नय 355 इसप्रकार यहाँ अनन्त धर्मात्मक आत्मा में विद्यमान 47 धर्मों का कथन किया। शुद्ध चैतन्यमात्र आत्मा को दृष्टि में लेना ही इन सभी धर्मों को जानने का फल है और यही श्रेयस्कर है। अभ्यास-प्रश्न 1. सैंतालीस नयों में उन नयों पर विशेष प्रकाश डालिए, जो आत्मा के त्रिकाली अभेद सामान्य द्रव्यस्वभाव की सिद्धि करते हैं। 2. सैंतालीस नयों में उन नयों पर विशेष प्रकाश डालिए, जिनसे आत्मा की पर्याय में विकारी भावरूप परिणमित होने की योग्यता सिद्ध होती है। 3. सैंतालीस नयों के स्वरूप एवं उपयोगिता पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए। 4. सैंतालीस नयों में पाँच समवाय सम्बन्धी नयों पर प्रकाश डालिए । 5. सप्तभंगी नयों को एक अन्य उदाहरण पर घटाइए । 6. साक्षीभाव को बतानेवाले नयों की जोड़ियों पर टिप्पणी लिखिए । 7. द्रव्यार्थिक- पर्यायार्थिक और द्रव्य - पर्यायनय में क्या अन्तर है ? 8. ज्ञान - ज्ञेयसम्बन्धी नयों पर प्रकाश डालिए । प्रत्यक्ष शिवमय सदा जो, उस आत्मा में है नहीं । ध्यानावली किंचित् अहो ! ये शुद्धनय कहता यहीं । । ध्यानावली है आत्मा में', वचन यह व्यवहार का । यह तत्त्व जो जिनवर कथित, है इन्द्रजाल अहो महा ।। - नियमसार कलश, 119 G
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy