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________________ (18) अनेकान्त-स्याद्वाद अनन्तधर्मणस्तत्त्वं, पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः। अनेकान्तमयी मूर्तिः, नित्यमेव प्रकाशताम्।। धर्म अनन्तमयी वस्तु जो, रहे सर्वदा पर से भिन्न। सदा प्रकाशित अनेकान्तमय, मूर्ति करे नित अवलोकन।। जैन शासन में प्रत्येक वस्तु अनेकान्तमयी अर्थात् अनन्त धर्मात्मक कही गई है। अनेकान्तमयी वस्तु को स्यावाद शैली से बतानेवाली जिनवाणी को भी अनेकान्त-मूर्ति कहा जाता है; अतः आचार्य अमृतचन्द्रदेव ने समयसार ग्रन्थ की आत्मख्याति टीका में समयसारस्वरूप भगवान-आत्मा को नमस्कार करने के बाद अनेकान्त-मूर्ति जिनवाणी को नमस्कार किया है। ___ अनन्त धर्मात्मक वस्तु में परस्पर विरोधी स्वभाववाले सत्असत्, नित्य-अनित्य आदि अनन्त धर्मयुगल भी त्रिकाल विद्यमान रहते हैं। एक वस्तु में परस्पर विरोधी धर्मों की देखनेवाली दृष्टि, जैनदर्शन की मौलिक दृष्टि है। अनेकान्तमयी वस्तु और स्याद्वादमयी शैली की चर्चा जिनागम के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं है। यद्यपि परमभावप्रकाशक नयचक्र में डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ने इस विषय पर सांगोपांग प्रकाश डाला है, फिर भी यहाँ प्रश्नोत्तर शैली के माध्यम से
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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