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________________ सैंतालीस नय 343 अपेक्षा ग्रहण करना कि कर्मों के टलने से मुक्ति हुई - दैवनय का कथन है और पुरुषार्थ से मुक्ति हुई - यह पुरुषकारनय का कथन है। ____4. यद्यपि यहाँ मुक्तिरूपी कार्य की चर्चा है, तथापि बाह्य संयोग-वियोग के बारे में भी इन नयों का प्रयोग समझना चाहिए। बाह्य संयोगों की प्राप्ति के लिए किये गये योग-उपयोगात्मक प्रयत्न को व्यवहार से पुरुषार्थ कहते हैं, परन्तु उससे इष्ट-संयोग की प्राप्ति होने का कोई नियम नहीं है, क्योंकि संयोगों की प्राप्ति उदयाधीन है। पापोदय में चाह व्यर्थ है, नहीं चाहने पर भी हो। पुण्योदय में चाह व्यर्थ है, सहजपने मनवांछित हो। उक्त पंक्तियों में संयोग-वियोग में कर्मोदय की प्रधानता बताई गई है। 5. बाह्य पदार्थों के संयोग-वियोग में उपादान कारण तो उन पदार्थों की तत्समय की योग्यता ही है, अतः पुरुषार्थ भी उन पदार्थों का उनमें ही है। हमारा प्रयत्न तो उन कार्यों में निमित्त मात्र है, जिसे उपचार से पुरुषार्थ कहते हैं। हम तो मात्र अपने प्रयत्नरूप कार्य का विकल्पात्मक पुरुषार्थ करते हैं। 6. पद्मपुराण में शम्बूकुमार द्वारा सूर्यहास-खड्ग की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न की घटना का वर्णन है। मन्त्र-सिद्धि की शम्बूकुमार ने, परन्तु उसका प्रयत्न निरर्थक हुआ, किन्तु लक्ष्मण को बिना किसी प्रयत्न के, बिना इच्छा के वह खड्ग प्राप्त हो गया और वही खड्ग, दुर्भाग्यवश शम्बूकुमार की मृत्यु का निमित्त बना। वर्तमान में सन् 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह बिना किसी इच्छा और प्रयास के प्रधानमन्त्री बन गए और प्रबल प्रयत्न करने वाले अनेक लोग नहीं बन पाए।
SR No.007162
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2013
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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