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सैंतालीस नय
333 अनित्यनय से राम-रावण आदि के स्वांगों की भाँति अनवस्थायी है। ___1. जैसे कोई कलाकार, राम-रावण या पुलिस-अपराधी आदि अनेक स्वांग धारण करने पर भी उस स्वांगरूप नहीं होता, वह व्यक्ति तो वही का वही रहता है, उसीप्रकार भगवान आत्मा भी नरनारकादि स्वांग धारण करने पर भी नहीं बदलता, आत्मा तो वही का वही, वैसा ही रहता है। आत्मा की यह योग्यता ही उसका नित्यधर्म है और उसे जाननेवाला ज्ञान नित्यनय है। ___ आचार्य अमृतचन्द्रदेव विरचित निम्न पंक्ति में आत्मा की नित्यता दिखाई गई है -
'नवतत्त्वगतत्वेऽपि यदेकत्वं न मुञ्चति' (समयसार कलश 7)
2. नित्य रहकर भी आत्मा किसी न किसी पर्याय (स्वांग) में अवश्य रहता है, परन्तु ये स्वांग नित्य नहीं हैं, ये बदलते रहते हैं। स्वांग बदलने की यह योग्यता ही उसका अनित्यधर्म है और इसे जाननेवाला ज्ञानांश ही अनित्यनय है। यह अनित्यधर्मरूप योग्यता भी आत्मा में नित्य रहती है।
3. प्रवचनसार, गाथा 114 की टीका में भी आत्मा की नित्यता और अनित्यता अच्छी तरह समझाई गई है। वहाँ पर्यायें परस्पर भिन्न (अव्यापक) हैं और द्रव्य, उनसे तत्काल तन्मय (अनन्य) होने से अन्य-अन्य है - इसप्रकार द्रव्य को पर्यायदृष्टि से अनित्य कहा गया है। ____4. इसी प्रकार प्रवचनसार, गाथा 116 में भी कोई पर्याय शाश्वत नहीं है - ऐसा कहकर प्रत्येक द्रव्य की प्रत्येक पर्याय की अनित्यता बताई गई है।