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नय-रहस्य उत्तर - उपर्युक्त कथन प्रवाह अपेक्षा से किया गया है। अनादि काल से श्रद्धागुण की प्रत्येक समय की पर्यायों में नवीन-नवीन मिथ्यात्व उत्पन्न हो रहा है। परन्तु प्रवाह अपेक्षा उसे अनादि का कहा जाता है। क्षायिक सम्यक्त्व भी प्रतिसमय अनन्त काल तक नया-नया होता रहेगा, अतः उसे भी प्रवाह अपेक्षा ही अनन्त कहा जाता है। यह बात अन्य सभी पर्यायों में भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए।
प्रश्न - भावनय, द्रव्यनय और सामान्यनय में क्या अन्तर है?
उत्तर - यह भगवान आत्मा, भावनय से वर्तमानपर्यायरूप प्रतिभासित होता है, द्रव्यनय से भूत-भाविपर्यायरूप प्रतिभासित होता है, जबकि सामान्यनय से भूत, वर्तमान और भविष्य - इन तीनों काल की पर्यायों में व्याप्त प्रतिभासित होता है।
सामान्यनय से अर्थात् द्रव्य-अपेक्षा आत्मा, सर्व पर्यायों में व्याप्त है, पर विशेषनय से अर्थात् पर्याय-अपेक्षा आत्मा, सर्व पर्यायों में व्याप्त नहीं है; इसीलिए यह कहा जाता है कि यह आत्मा, सामान्यनय से व्यापक है और विशेषनय से अव्यापक है।
प्रश्न - प्रथम द्रव्यनय और इस सामान्यनय में क्या अन्तर है?
उत्तर - प्रथम द्रव्यनय, आत्मा को चिन्मात्र देखता है, गुणपर्यायों में व्यापकता उसका विषय नहीं, वह सामान्यनय का विषय है। इसीप्रकार पर्यायनय का विषय गुण-पर्याय के भेदमात्र हैं, उनकी अव्यापकता नहीं, उनकी परस्पर अव्यापकता विशेषनय का विषय है।
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. नित्यनय और अनित्यनय आत्मद्रव्य, नित्यनय से नट की भाँति अवस्थायी है और